उत्तर प्रदेश में स्कूलों को कोरोना काल में लिए गए फीस का 15 प्रतिशत होगा लौटाना, हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार का शासनादेश जारी
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सभी बोर्ड के समस्त विद्यालयों को 27 अप्रैल 2020 को जारी किए गए शासनादेश द्वारा निर्धारित दरों के अनुसार शैक्षिक सत्र 2020-21 में लिए गए शुल्क की 15 प्रतिशत धनराशि विद्यार्थियों को लौटानी होगी। विद्यालयों को यह धनराशि वर्तमान शैक्षिक सत्र में विद्यार्थियों की फीस में समायोजित करनी होगी। पढ़ाई पूरी करने के बाद विद्यालय को छोड़कर जाने वाले विद्यार्थियों को यह धनराशि वापस नहीं करनी होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में माध्यमिक शिक्षा विभाग ने इस बारे में गुरुवार को शासनादेश जारी कर दिया है। शासनादेश का कड़ाई से अनुपालन कराने का निर्देश दिया गया है।
बता दें कि कोरोना महामारी के दृष्टिगत लागू किए गए लॉकडाउन के कारण पैदा हुई आपात परिस्थितियों को देखते हुए राज्य सरकार ने 27 अप्रैल 2020 को शासनादेश जारी कर स्कूलों को शैक्षिक सत्र 2020-21 में फीस नहीं बढ़ाने का निर्देश दिया था। स्कूलों से कहा गया था कि वे शैक्षिक सत्र 2019-20 में नए प्रवेश तथा प्रत्येक कक्षा के लिए लागू की गई शुल्क संरचना के अनुसार ही सत्र 2020-21 में छात्र-छात्राओं से शुल्क लें। शासनादेश में यह भी कहा गया था कि यदि किसी विद्यालय ने सत्र 2020-21 में शुल्क वृद्धि करते हुए बढ़ी हुई दर से फीस ले ली है तो बढ़े हुए अतिरिक्त शुल्क को उसे आगामी महीनों के शुल्क में समायोजित करना होगा।
कोरोना काल में स्कूलों की ओर से वसूली जा रही फीस को माफ किए जाने को लेकर विद्यार्थियों के अभिभावकों की ओर से तमाम याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई थीं। जिसमें अभिभावकों की ओर से कहा गया था कि कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण विद्यार्थी स्कूल नहीं जा सके, सिर्फ आनलाइन पढ़ाई हुई। इसलिए स्कूलों के तमाम खर्च बच गए, जो उन्होंने विद्यार्थियों को दी जाने वाली सुविधाओं के नाम पर फीस के रूप में वसूली थीं। सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 6 जनवरी 2023 को आदेश जारी करते हुए स्कूलों को सत्र 2020-21 की 15 प्रतिशत फीस भविष्य में विद्यार्थियों से ली जाने वाली फीस में समायोजित करने का आदेश दिया था। यह भी आदेश दिया था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद स्कूल छोड़कर जाने वाले विद्यार्थियों को यह रकम वापस कर दी जाए।
इस संबंध में माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से गुरुवार को जारी किए गए शासनादेश में यह भी कहा गया है कि इन निर्देशों का अनुपालन न किए जाने से यदि कोई छात्र या संरक्षक या अभिभावक अध्यापक एसोसिएशन क्षुब्ध है तो वे उप्र स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018 की सुसंगत धारा के तहत जिला शुल्क नियामक समिति के समक्ष शिकायत कर सकेंगे। जिला समिति इस पर यथोचित निर्णय लेगी। अगर कोई मान्यता प्राप्त विद्यालय या कोई व्यक्ति, जो जिला शुल्क नियामक समिति के निर्णय से व्यथित है तो वह मंडलीय स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील कर सकता है।