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पौड़ी गढ़वाल : जिले के इस गांव में नहीं हुआ एक भी नामांकन, पंचायत चुनाव बहिष्कार की चेतावनी, ये हैं वजह …..

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पौड़ी : जनपद के कल्जीखाल ब्लॉक स्थित ग्राम पंचायत डांगी में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस बार ग्राम प्रधान की सीट को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) महिला के लिए आरक्षित किया गया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम डांगी में ओबीसी वर्ग का कोई भी प्रमाणित व्यक्ति ही नहीं है।

ग्रामीणों ने जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया को ज्ञापन सौंपते हुए बताया कि वर्ष 2015 से अब तक ग्राम में ओबीसी प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जा रहे हैं। ऐसे में ग्राम प्रधान पद को ओबीसी महिला के लिए आरक्षित किया जाना पूरी तरह से अनुचित और नियमों के विरुद्ध है।

समाजसेवी जगमोहन डांगी ने बताया कि इस संबंध में कई बार संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। प्रमाण पत्र न बनने के कारण न तो कोई पात्र उम्मीदवार सामने आ सका, और न ही ग्राम प्रधान पद के लिए एक भी नामांकन दाखिल हो पाया है। इससे ग्रामीणों में भारी रोष है। ग्रामीणों ने इस स्थिति से नाराज होकर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मतदान के बहिष्कार का ऐलान भी कर दिया है।

वहीं जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया ने बताया कि ग्रामीणों द्वारा उठाए गए मुद्दे को लेकर शासन को मार्गदर्शन हेतु पत्र भेजा जाएगा। जैसे ही शासन से निर्देश प्राप्त होंगे, उसके अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी।

विकास खंड कल्जीखाल के अंतर्गत ग्राम पंचायत डांगी में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का बहिष्कार करने का बड़ा फैसला लिया गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रधान पद पर बार-बार पिछड़ी जाति महिला के लिए आरक्षण होने से ग्राम पंचायत का विकास पूरी तरह से ठप पड़ गया है और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीणों ने साफ़ कह दिया है कि “प्रधान नहीं तो क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्य भी मंजूर नहीं है।”

रविवार को निवर्तमान प्रधान भगवान सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में ग्राम पंचायत डांगी के ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया। उनका कहना है कि उनके गांव में लगातार प्रधान पद पिछड़ी जाति महिला के लिए आरक्षित किया जा रहा है, जिससे कई संवैधानिक और व्यावहारिक दिक्कतें आ रही हैं।

विकास में बाधा और सरकारी योजनाओं से वंचित ग्रामीण

ग्रामीणों ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि जाति प्रमाण पत्र न मिल पाने के कारण प्रधान पद पर नामांकन ही नहीं हो पाता। इस प्रक्रिया में आरक्षण परिवर्तन करने में ही लगभग एक साल का समय लग जाता है, जिसके कारण ग्राम पंचायत में सभी विकास कार्य पूरी तरह से रुक जाते हैं।

समस्या यहीं खत्म नहीं होती। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले दो वर्षों से ग्राम पंचायत में आंगनबाड़ी कार्यकत्री और सहायिका के पद भी ओबीसी (पिछड़ी जाति) महिला के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। चूंकि ग्राम पंचायत में ओबीसी वर्ग से संबंधित महिला उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए ये दोनों पद आज भी रिक्त पड़े हैं। इसके चलते आंगनबाड़ी के माध्यम से केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा महिलाओं और बच्चों के लिए चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनता तक सही ढंग से नहीं पहुँच पा रहा है।

ग्रामीणों का तर्क है कि यदि प्रधान पद पर कोई नहीं होगा, तो ग्राम पंचायत के अधीन लगभग तीन दर्जन विभाग भी उसके नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। ऐसे में हर छोटे-बड़े कार्य के लिए ग्रामीणों को ब्लॉक मुख्यालय स्थित प्रशासक/एडीओ पंचायत के पास चक्कर काटने पड़ेंगे, जिससे उनकी दिक्कतें और बढ़ जाएंगी।

आरक्षण की पुरानी समस्या और “राजपूत सुनार” का पेंच

ग्रामीणों ने बताया कि प्रधान पद पर पिछड़ी जाति महिला के आरक्षण को लेकर समय रहते आपत्ति दर्ज करा दी गई थी, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह समस्या नई नहीं है। वर्ष 2014 में भी इसी प्रकार प्रधान पद पिछड़ी जाति महिला के लिए आरक्षित कर दिया गया था। उस समय भी प्रमाण पत्र निर्गत न होने से पेंच फंस गया था, जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी के आदेशों पर अंतिम समय में तहसील प्रशासन ने प्रमाण पत्र जारी किया था।

हालांकि, 2014-15 के बाद डांगी गांव में निवास करने वाले सुनार समुदाय, जिनकी उपजाति बंदोबस्त नकल में “राजपूत सुनार” होने के कारण उन्हें ओबीसी प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जा रहा है। चूंकि प्रधान पद और आंगनबाड़ी के दोनों पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित हैं, इस कारण डांगी ग्राम पंचायत के अन्य राजस्व गांवों को, जिनका ओबीसी पिछड़ा वर्ग से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें भी इस संवैधानिक संकट से जूझना पड़ रहा है।