Saturday, December 28th 2024

उत्तराखंड : नहीं रहे लोक गायक किशन सिंह पंवार, याद आएगा “ना पे सफरी तमाखू…”

उत्तराखंड : नहीं रहे लोक गायक किशन सिंह पंवार, याद आएगा “ना पे सफरी तमाखू…”

देहरादून: उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक किशन सिंह पवार गुरुजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनका देहरादून के एक अस्पताल में निधन हो गया था। किशन सिंह पंवार ने अपने शिक्षक जीवन के साथ ही लोक गायकी को भी पूरे आनंद से जिया।

उनके गानों ने जनमानस के मन पर और दिलों पर अलग छाप छोड़ी। उनके गीत आज भी प्रासंगिक हैं और संदेश देने का काम करते हैं। आज सरकारें भले ही तंबाकू निषेध को लेकर तमाम दावे और बातें कर रही हो। लेकिन, किशन सिंह पंवार ने बहुत पहले ही न पे सफरी तमाखू… गाना गाकर लोगों को तंबाकू नहीं पीने के लिए जागरूक किया था।

आज से 30-35 साल पहले अपनी सुरीली आवाज से गढ़वाली जनमानस का तृप्त मनोरंजन करने वाले किशनसिंह पंवार इस दुनिया से विदा हो गए। 80 के दशक में टेपरिकॉर्डर के दौर में धार-धार, गांव-गांव शृंगारिक और जनजागरूकता गीतों से छाप छोड़ने वाले किशनसिंह अध्यापक से प्रसिद्ध गायक बन गए थे।

‘कै गऊं की होली छोरी तिमलू दाणी…’ ‘न प्ये सपुरी तमाखू…’, ‘ऋतु बौडी़ ऐगी…’, ‘यूं आंख्यों न क्या-क्या नी देखी…’, ‘बीडी़ को बंडल…’ जैसे उनके गीत कालजयी बन गए और उन्हें अमर कर गए। तब आज की तरह संगीत यंत्रों की प्रचुरता और समृद्धि-सुविधाएं नहीं थी।

बावजूद उन्होंने ने संघर्ष के बूते अपनी आवाज को गढ़वालियों तक पहुंचाने में कसर नहीं छोडी़। शादियों में उनकी कैसेट्स की धूम रहती थी। उनके श्रृंगार गीतों में पवित्रता थी। उनमें पहाड़ का भोलापन और निश्छलता थी।

उनके गीतों के नायक-नायिका मेल-मुलाकात, मनोविनोद और हंसी-मजाक करते थे, परंतु मर्यादा के आवरण में रहकर। उनके गीत का नायक नायिका को बांज काटने के बहाने भेंट करने को बुलाता था। उनके गीतों की भीनी सुगंध आत्मा को तृप्ति और मन को सुकून देती थी।

टिहरी गढ़वाल के प्रतापनगर प्रखंड में रमोली पट्टी के नाग गांव में जन्मे किशनसिंह पंवार ने 70 साल की उम्र में देहरादून के अस्पताल में अंतिम सांस ली। विनम्र श्रद्धांजलि।

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