समान नागरिक संहिता से इतना बदल जायेगा महिलाओं का जीवन, पढ़िये क्या होगा प्रभाव
देहरादून: प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में सार्थक कदम बढ़ने लगे हैं। विशेषज्ञ समिति संहिता का ड्राफ्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप चुकी है। समिति के ड्राफ्ट के कानूनी रूप लेने के बाद इससे प्रदेश की आधी आबादी सीधे लाभान्वित होगी। समिति ने ड्राफ्ट में लड़कियों के विवाह की आयु बढ़ाने, बहुविवाह पर रोक लगाने, उत्तराखंड में लड़कियों के बराबर हक, सभी धर्मों की महिलाओं को गोद लेने का अधिकार व तलाक के लिए समान आधार रखने की पैरवी की है।
प्रदेश में समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट बनाने के लिए सरकार ने जब समिति का गठन किया था, उस समय भी यह कहा गया था कि यह समिति महिला अधिकारों को तवज्जो देगी। इसके पीछे कारण भी है। दरअसल, राज्य निर्माण में प्रदेश की आधी आबादी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राज्य निर्माण आंदोलन में महिलाएं अग्रिम पंक्ति में खड़ी रही। पर्वतीय क्षेत्रों में यदि गांव अभी भी आबाद हैं, तो वह इसी आधी आबादी की बदौलत हैं। ये खेती से लेकर घर का चूल्हा चौका करने और परिवार को संभालने का कार्य कर रही हैं। अब ये स्वयं भी सबल होने लगी हैं। विशेषज्ञ समिति ने जो ड्राफ्ट सरकार को सौंपा है, उसमें की गई संस्तुतियों में महिला अधिकारों के संरक्षण का पूरा ख्याल रखा गया है।
सभी धर्मों में विवाह के लिए 18 वर्ष हो लड़की की उम्र
सूत्रों के अनुसार समिति ने सभी धर्मों में विवाह के लिए लड़कियों की न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष करने की संस्तुति की है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि विवाह से पहले वे अच्छी तरह शिक्षित हो सकें। बाल विवाह को अपराध की श्रेणी में रखते हुए इसमें सजा व जुर्माना दोनों रखने की पैरवी की गई है।
विवाह का पंजीकरण नहीं तो सरकारी सुविधाओं का लाभ भी नहीं
समिति ने विवाह के लिए पंजीकरण को अनिवार्य करने की सिफारिश की है। बिना पंजीकरण के दंपति को सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित रखने पर जोर दिया गया है। ग्राम स्तर पर भी विवाह के पंजीकरण की अनुमति देने की व्यवस्था करने की संस्तुति की गई है।
पति-पत्नी को संबंध विच्छेद में समान अधिकार
पति-पत्नी को तलाक अथवा संबंध विच्छेद में समान अधिकार उपलब्ध होंगे। यानी तलाक का जो आधार पति के लिए लागू होगा, वही पत्नी के लिए भी लागू होगा। कुछ धर्मों में पति व पत्नी में तलाक के अलग-अलग आधार तय हैं। समिति ने बहुविवाह पर भी रोक लगाने की संस्तुति की है। एक पत्नी के जीवित रहते पति का दूसरा विवाह अपराध की श्रेणी में आएगा। साथ ही तलाक को कानूनीजामा पहनाने पर जोर दिया गया है। तलाक या संबंध विच्छेद कानून के अनुसार ही होगा, जो सभी धर्मों के व्यक्तियों पर लागू होगा। इसमें भी दोनों पक्षों को एक बार फिर विचार करने को छह माह का समय दिया जाएगा। अभी कुछ धर्मों में विवाह विच्छेद के समय फिर से विचार करने का प्रविधान नहीं है, तो वहीं कुछ धर्मों में यह अवधि छह माह से दो वर्ष तक है।
लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य
समिति द्वारा की गई संस्तुति में लिवइन रिलेशनशिप से पहले पंजीकरण करना अनिवार्य किया गया है। यह सक्षम अधिकारी के समक्ष किया जाएगा। ऐसा न करने पर सजा व आर्थिक दंड का प्रविधान है। लिवइन के दौरान कोई संतान पैदा होती है तो उसे माता-पिता का नाम देना होगा और सभी हितों का संरक्षण करना होगा।
अन्य प्रमुख संस्तुतियां
- उत्तराधिकार में लड़कियों को समान अधिकार। अभी कुछ धर्मों में लड़कों का हिस्सा अधिक है।
- नौकरी करने वाले बेटे की मृत्यु पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी।
- पत्नी अगर पुनर्विवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले मुआवजे में माता-पिता का भी हिस्सा होगा।
- पत्नी की मृत्यु होने पर यदि उसके माता पिता का कोई सहारा न हो तो उनके भरण पोषण का दायित्व पति पर रहेगा।
- सभी धर्मों की महिलाएं ले सकेंगी बच्चों को गोद। अभी कुछ धर्मों में है मनाही।
- अनाथ बच्चों के अभिभावक बनने की प्रक्रिया होगी सरल।
- पति-पत्नी के झगड़े में बच्चों की उनके दादा-दादी अथवा नाना-नानी को सौंपी जा सकती है कस्टडी।