पटन देवी मंदिर : यहां गिरी थी माता सती की दाहिनी जंघा, जिनके नाम पर है इस शहर का नाम
पटना : बिहार की राजधानी पटना को प्राचीन समय में मगध की राजधानी के रूप में जाना जाता था, लेकिन साल 1912 में इस बिहार की स्थापना के बाद पटना शहर को राजधानी के रूप में जाना जाने लगा। साल 1912 में जब पटना को राजधानी के रूप में निर्माण किया जा रहा था, तब ये सोचा गया कि इस शहर का नाम क्या होना चाहिए। तब ध्यान आया कि पूरे पटना के साथ बिहार के लिए पटन देवी का मंदिर बेहद ही प्रसिद्ध मंदिर है, तो क्यों न इस शहर का नाम इस मंदिर के नाम से रखा जाए। तब पटन देवी मंदिर के नाम से इस शहर का नाम पटना रखा गया। इस लेख में हम आपको पटन देवी मंदिर के बारे में कुछ रोचक जानकारी बताने जा रहे हैं।
पौराणिक कथा
इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक बेहद ही पवित्र कथा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के पिता यानी दक्ष प्रजापति एक यज्ञ करवा रहे थे। इस यज्ञ के दौरान दक्ष प्रजापति ने अपनी बेटी की पति का अपमान कर दिया, जिसके बाद सती गुस्से में आकर इस यज्ञ में कूदकर अपनी लीला समाप्त कर ली थी। इस घटना से महादेव बेहद ही गुस्सा हुए और सती की मृत शरीर को हाथों में लेकर तांडव करने लगे थे। इस तांडव से पूरा ब्रह्माण्ड डर गया था, तब इस डर और शिव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर पर अपना सुदर्शन चक्र चला दिया। इस चक्र से सती की मृत शरीर के लगभग 51 खंड हुए। ये अंग जिस जगह गिरे उस स्थान पर शक्तिपीठ की स्थापना की गई। कहा जाता है कि पटना शहर में सती की दाहिनी जंघा गिरी थी। जिसके बाद इस स्थान पर मंदिर का निर्माण हुआ और आदिकाल से यहां हर साल लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए आते रहे हैं।
छोटी और बड़ी पटन देवी मंदिर
सती के 51 शक्तिपीठों में से एक पटन देवी मंदिर को दो रूप में जाना जाता है। एक मंदिर को छोटी पटन देवी और दूसरे मंदिर को बड़ी पटन देवी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। कई लोग इस मंदिर को पटना शहर को रक्षा करने वाली यानि रक्षिका भगवती पटनेश्वरी भी कहा जाता है। इस मंदिर परिसर में मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की भी मूर्तियां मौजूद हैं।