इस मंदिर के द्वार के पास जंजीरों में बंधे हैं महा बलशाली हनुमान जी! जानें अद्भुत कथा
पुरी : पुरी के जगन्नाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि पास स्थित समुंदर की लहरें कभी भी मंदिर के प्रांगण में आ जाती थीं, जिससे वहां लगभग हर वक़्त स्थिति आपदा वाली रहती थी। इस कारण वहां पर आए भक्तों को बहुत परेशानी होती थी एक बार तो खुद वरुण भगवान का दर्शन करना चाहते थे, इसलिए वह मंदिर गए और परिणामस्वरूप शहर में बाढ़ आ गई। वहां के निवासी चाहते थे कि कोई ऐसा होना चाहिए जो समुद्र के पानी को मंदिरों के शहर में प्रवेश करने से रोक सके। अब कौन कर सकता था यह दुरूह कार्य। आखिरकार, सब हनुमान जी की ओर मुड़े। जो भगवान राम के समय में माता सीता को खोजने के लिए आसानी से समुद्र पार कर गए थे।उनकी व्यथा सुनकर हनुमानजी खुशी से समुद्र को रोकने के लिए राजी हो गए।सबने राहत महसूस की और खुश थे, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए हनुमानजी दुखी होने लगे। क्योंकि भोजन के कारण जो उन्हें दिया गया था।
कहा जाता है कि उस दौरान भगवान जगन्नाथ को भोग के रूप में सिर्फ खिचड़ी ही चढ़ाई जाती थी और वही हनुमान को भी दिया गया था। जिससे वह तंग आ गए। उन्हें तो अयोध्या में स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेने का अनुभव था। एक दिन वह अपने आप को रोक नहीं पाए और उन्होंने सोचा कि कुछ देर के लिए अयोध्या जाने जाता हूं और जितना हो सके तरह-तरह के भोजन करने के बाद फिर मैं जल्दी से वापस पुरी लौट आऊंगा। अत: वह रात्रि में स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद लेने अयोध्या चले गए। लेकिन उनकी अनुपस्थिति में समुद्र शहर में प्रवेश कर गया। हर कोई सोच रहा था कि ऐसा कैसे हो गया? जल्द ही उन्हें पता चला कि हनुमानजी थोड़े समय के लिए शहर में नहीं थे और उन्होंने भगवान से बिना मंजूरी के छुट्टी ले ली थी। इस पर भगवान जगन्नाथ ने आदेश दिया कि हनुमानजी को जंजीरों से बांध दिया जाए। हनुमान ने अपनी गलती स्वीकार की और खुशी-खुशी बंधने को तैयार हो गए। कहा जाता है कि जंजीर की हर कड़ी पर भगवान राम का नाम खुदा हुआ है। इसलिए यहां हनुमान को वेदी हनुमान या बेदी हनुमान यानी जंजीरों से बंधे हनुमान भी कहा जाता है। उन्हें दरिया महावीर के नाम से भी जाना जाता है।
इस सजा के बाद अपने मुकदमे की पैरवी करते हुए हनुमानजी ने भगवान जगन्नाथ को बताया कि उन्हें क्यों रात में अयोध्या भागना पड़ा था। भगवान जगन्नाथ ने समस्या को समझा और कहा जाता है कि उस दिन से यह निर्णय लिया गया कि भगवान जगन्नाथ को विभिन्न प्रकार के भोजन का भोग लगाया जाएगा। साथ ही हनुमान जी को भी विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा। हनुमान अब प्रसन्न हुए और उन्होंने वहीं रहने का फैसला किया। उस दिन के बाद से कभी भी ज्वार की लहरों ने शहर में प्रवेश नहीं किया, निवासियों को कभी परेशान नहीं किया और हनुमान श्रीक्षेत्र के संरक्षक देवता कहलाए। बेड़ी हनुमान मंदिर भक्त और भगवान के बीच अनूठे संबंध की कहानी कहता है. जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करने वाले हर भक्त बेड़ी हनुमान जरूर जाते हैं। इसकी भी वजह बताई जाती है कि जो भक्त जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करके आते हैं, हनुमान जी उनकी ही आंखों में झांक कर प्रभु के दर्शन करते हैं। इस मंदिर में हनुमान जी का मुख कुछ टेढ़ा है और आंखें चौड़ी हैं। कहते हैं कि जब भगवान उन्हें बांधकर यहां से गए तो वह उसी ओर देखते रहे, जिधर से भगवान गए।